बाबर की प्रमुख युद्ध
पानीपत का युध्द
पानीपत का युध्द भारत मे इसे लाहौर के गवर्नर और इब्राहिम लोदी चाचा
दौलत खाँ ने अपने पुत्र बिलाबल खाँ और बहलोल लोदी के पुत्र आलम खाँ को बाबर को भारत पर आक्रमण
करने हेतु आमंत्रित करने के लिए भेजा गया कहीं कहीं उल्लेख मिलता है कि राणा ने भी बाबर को भारत पर
आक्रमण करने के लिए भेजा था
पानीपत का प्रथम युध्द बाबर ने अपने 12,000 सैनिकों के सहायोग से इब्राहिम लोदी की सेना को बहुत बुरी
तरह परास्त किया इस युध्द में उसने अपनी प्रसिध्द तुलगुमा युध्द नीति का और तोप खाने का प्रयोग किया इस
युध्द की खुशी में बाबर ने काबुल वासियों को एक-एक का सिक्का उपहार में दिया अपनी इस उदारता के
कारण बाबर को कलंदर कहा गया
अपनी विजय के बाद बाबर ने 27 अप्रैल 1526 को दिल्ली में मुगल वंश के संस्थापक के रूप में अपना
राज्यभिषेक कराया
पानीपत के युध्द के समय भारत की राजनैतिक शक्ति अफगानों और राजपूतों में बँटी थी इस राजनीतिक शक्ति
पर अधिकार के उद्देश्य से बाबर ने खानवा और घाघरा का युध्द लडा
चंदेरी का युध्द
चंदेरी का युध्द 29 जनवरी 1528 को बाबर और चंदेरी के शासक मेधनीय राय के बीच हुआ युध्द में बाबर विजयी रहा
घाघरा का युध्द
घाघरा का युध्द में घघर, बिहार नदी के तट पर बाबर ने अफगानों को पराजित किया मध्यकाल का यह पहला युध्द था जल और थल दोनो में लडा गया था ये बाबर द्वारा लडी गई अंतिम लडाई थी
बाबर की मृत्यु
26 दिसम्बर 1530 को बाबर की मृत्यु हो गई और उसे काबुल में दफनाया गया बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया